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5. भगवान के मुख में द्विज निवास करते हैं. भगवान ने सोचा कि मैं राजस कर्म करुंगा तो इसकी सूचना मुंह में बैठे द्विज अथवा दांतों को देने के लिए उन्हें रज से युक्त करना पड़ेगा. इसलिए एक टुकड़ा मिट्टी खाना जरूरी है.
6. संस्कृत-साहित्य में पृथ्वी का एक नाम ‘क्षमा’ भी है. श्रीकृष्ण ने देखा कि ग्वालबाल मेरे साथ खेलते हैं, अपना सखा मानकर गाली भी दे देते हैं, अपमान भी कर बैठते हैं. इस तरह उनके कर्म दूषित हो रहे हैं, उनका परलोक न बिगड़े इसलिए मुझे अपने भीतर क्षमा धारण करना चाहिये .
7. भगवान ने सोचा कृष्ण अवतार मेरा प्रेम अवतार है. अगर मैं इन भोले भाले ब्रजवासियों को क्षमा नहीं करूँगा तो ब्रहम को गाली देने के कारण इनको नरक में जाना होगा. तब प्रभु ने पृथ्वी के गुण को सबके सामने प्रगट करने के लिए मिट्टी खाई. पृथ्वी से ज्यादा क्षमाशील कोई नहीं. वह अपने ऊपर अत्यातार करके फसल उगाने वाले किसानों को सबसे ज्यादा प्रेम करती हैं. पृथ्वी का इससे मान बढ़ेगा.
8. कल को मैं जो अद्भुत लीला दिखाऊंगा और ये मानेंगे नहीं तो मुझे क्रोध भी आ सकता है. मुझे क्रोध आया तो सब भस्म. इसलिये उनके साथ पृथ्वी का क्षमांश धारण करके ही क्रीडा करनी चाहिये, जिससे कोई विघ्न न पड़े, सब बचे रहें.
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