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जब मकड़ी निराश हो गई तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद मांगी.

चींटी बोली- मैं बहुत देर से तुम्हें देख रही थी. तुम बार-बार अपना काम शुरू करती हो और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती हो. जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी तो यही हालत होती है.

चींटी ने ऐसा कहकर अपने रास्ते चल पड़ी. मकड़ी सोचने लगी कि अगर उसने जो पहला जाला आधा बनाया था उसे पूरा कर देती तो अभी उसमें बैठी आराम कर रही होती और कुछ न कुछ खाने को भी फंस ही जाता.

चींटी अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही. साथियों, हमारी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसा ही होता है. हम कुछ काम शुरू करते हैं. शुरू -शुरू में तो हम उसके लिए उत्साहित रहते हैं पर दूसरे के कमेंट से उत्साह कम हो जाता है.

हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते हैं बाद में पछताते हैं. अपनी सफलता हमें खुद लिखनी है. रास्ता हमारा है. किसी बिल्ली, चिड़िया या काक्रोच को अपनी मेहनत पर पानी न फेरने दें.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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