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महात्मा जी को बिश्वास हो गया की, वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती, वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते।
मंज़िलों से गुमराह भी, कर देते हैं कुछ लोग। हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता। खुबसूरत रिश्ता है मेरा और भगवान के बीच में, ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वो देता नही। अगर भगवान नहीं है तो उसका ज़िक्र क्यो। और अगर भगवान है तो फिर फिक्र क्यों।
प्रभु शरणम्
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