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गुरुजी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा- ले आये गुरुदक्षिणा?

तीनों ने सर झुका लिया.

उनमें से एक शिष्य कहने लगा- गुरुदेव, हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाए.

हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में बिखरी ही होंगी लेकिन आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं.

गुरु ने कहा- सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग होते हैं यही ज्ञान देने के लिए मैंने यह गुरुदक्षिणा मांगी थी. तीनों शिष्य गुरु को प्रणाम कर अपने-अपने घर की ओर चले गए.

शिष्य जो गुरु जी की कहानी ध्यान से सुन रहा था.

उत्साह से बोला- गुरुजी, मैं भी आपकी बात का मर्म समझ गया. जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी बेकार नहीं होतीं तो फिर हम कैसे किसी को छोटा और महत्त्वहीन मानकर तिरस्कार कर सकते हैं?

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