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कनक का वध करने के बाद इंद्र अंधकासुर के भय से भगवान शिव की शरण में कैलाश पर चले गए. इन्द्र ने महादेव की स्तुति की और सारा हाल कहा.
इंद्र ने कहा- कनक ने मुझसे युद्ध ठाना था, मैंने नहीं. भगवन! मैं आपके भक्त अंधकासुर का अहित नहीं करना चाहता था. अंधकासुर से मुझे अभय दीजिए.
इन्द्र से सारा हाल सुनकर महादेव ने उन्हें अभय प्रदान किया. पुत्र के वध करने वाले को महादेव ने शरण दी! क्रोधित अंधक ने महादेव को युद्ध के लिए ललकारा.
दोनों में घमासान संग्राम हुआ. युद्ध करते हुए भगवान शिव के मस्तक से पसीने की बूंद पृथ्वी पर गिरी जिसे पृथ्वी ने धारण कर लिया.
उससे अंगार यानी प्रज्ज्वलित अग्नि के समान लाल वर्ण वाले, त्रिशूल, गदा, अभयमुद्रा और वरमुद्रा धारी एक परम तेजस्वी पुरुष का जन्म हुआ.
लाल मालाओं से युक्त इस तेजस्वी योद्धा स्वरूप शिव और पृथ्वी के अंश को ऋषियों ने अंगारक, रक्ताक्ष और मदादेव पुत्र कहकर स्तुति की.
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