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सूर्यभक्त सत्राजित द्वारका के बड़े जमींदार थे. सूर्यदेव ने उन्हें स्यमंतक मणि भेंट की थी. उस मणि में सूर्य का तेज था और वह प्रतिदिन आठ भार सोना भी देती थी.

इस धन से सत्राजित अभिमानी हो गए थे.वह श्रीकृष्ण से द्वेष रखते थे और प्रभु की बुराई का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. सत्राजित की अत्यंत रूपवती और शस्त्रविद्याओं में कुशल बेटी सत्यभामा बचपन से श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी जो देवी लक्ष्मी का अंशरूप थीं.

सत्राजित ने कृष्ण के मित्र सात्यकि के बेटे से सत्यभामा के विवाह का प्रस्ताव दिया. सात्यकि जानते थे कि सत्यभामा श्रीकृष्ण से प्रेम करती हैं.

इसलिए सात्यकि ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. इसके बाद सत्राजित का श्रीकृष्ण के प्रति बैर और बढ़ गया. लेकिन श्रीकृष्ण कोई बैर नहीं रखते थे.
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