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अंत में तीसरे वृक्ष ने कहा- मैं तो इस जंगल का सबसे बड़ा और ऊंचा वृक्ष ही बनना चाहता हूं. लोग दूर से ही मुझे देखकर पहचान लें. वे मुझे देखकर ईश्वर का स्मरण करें और मेरी शाखाएं स्वर्ग तक पहुंचें. मैं संसार का सर्वश्रेष्ठ वृक्ष ही बनना चाहता हूं.
ऐसे ही सपने देखते-देखते कई सारे साल गुज़र गए. उन्हें विश्वास था कि कभी न कभी दिन उनका सपना पूरा जरूर होगा. उन्हें ईश्वर की लीला की प्रतीक्षा थी.
एक दिन उस जंगल में कुछ लकड़हारे आए. उनमें से जब एक ने पहले वृक्ष को देखा तो अपने साथियों से कहा- इस वृक्ष को देखो. इसे बढ़ई को बेचने पर बहुत पैसे मिलेंगे. पैसे के लिए वे पहले वृक्ष को काटने लगे.
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आश्चर्य की बात या ईश्वर की लीला देखिए कि आरी चलाई जा रही है फिर भी वह वृक्ष बड़ा खुश था. उसका तो जैसे सपना पूरा होने वाला था. उसने सुना कि उसे बढ़ई को बेचने के लिए काटा जा रहा है तो उसे न जाने क्यों ऐसा यकीन हो गया कि बढ़ई उससे खजाने का बक्सा ही बनाएगा.
इसके बाद लकड़हारों ने दूसरे वृक्ष का मुआयना किया और आपस में चर्चा करके एक निष्कर्ष पर पहुंचे. लकड़हारों के लीडर ने कहा- यह वृक्ष भी लंबा और मजबूत है. मेरे ख्याल से ऐसे पेड़ जहाज के लिए सबसे अच्छे रहते हैं. इससे लंबा और मजबूत जहाज बनेगा. मैं इसे जहाज बनाने वालों को बेचूंगा, वहीं से अच्छे दाम मिलेंगे.
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दूसरा वृक्ष भी खुश था. ईश्वर की लीला देखिए उसका चाहा भी पूरा होने वाला था.
अब लकड़हारे तीसरे वृक्ष के पास आए. मुआयना करने लगे पर यह क्या जहां दूसरे वृक्ष खुश थे, वहीं उनका तीसरा मित्र तो भयभीत हो गया.
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