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सभी लोग महल में भोजन करने के लिए चल पड़े. माता जानकी भोजन परोसने लगीं. हुनमानजी को भी श्रीराम जी ने पंक्ति में बैठने का आदेश दिया. हनुमानजी बैठ तो गए परंतु आदत ऐसी थी की श्रीराम के भोजन के उपरांत ही सभी भोजन करते थे.
आज श्री राम के आदेश से पहले भोजन करना पड़ रहा था. माता जानकी हनुमान जी को भोजन परोसती जा रही थी पर हनुमान का पेट ही नहीं भर रहा था. कुछ समय तक तो उन्हें भोजन परोसती रहीं फिर समझ गईं इस तरह से हनुमानजी का पेट नहीं भरने वाला.
उन्होंने तुलसी के एक पत्ते पर राम नाम लिखा और भोजन के साथ हनुमानजी को परोस दिया. तुलसीपत्र खाते ही हनुमानजी को संतुष्टि मिली और वह भोजन पूर्ण मानकर उठ खड़े हुए.
भगवान शिवशंकर ने प्रसन्न होकर हनुमानजी को आशीर्वाद दिया कि आप की राम भक्ति युगों-युगों तक याद की जाएगी और आप संकट मोचन कहलाएंगे.(आध्यात्म रामायण की कथा)
यह रामकथा सुधांशु मिश्र ने मुंबई से भेजी. सुधांशुजी नौकरीपेशा हैं और धर्म आध्यात्म में रूचि रखते हैं.
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