आषाढ़ मास की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा कहलाती है. कृष्ण द्वैपायन श्रीव्यासजी (वेद व्यासजी) का जन्म भी आषाढी पूर्णिमा को हुआ था. गुरू पूर्णिमा को शास्त्रों में भाग्योदय से जोड़कर देखा गया है. गुरु पूर्णिमा को कैसे गुरु पूजन करें, कैसे हो सकता है भाग्योदय?

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व्यासजी ने चारों वेदों को लिपिबद्ध किया अर्थात लिखित रूप में प्रस्तुत किया. इसलिए इन्हें वेदव्यास कहते हैं. उससे पहले वेद भगवान का पाठ स्मरण आधारित होता था. गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजा का विधान है. गुरू पूर्णिमा को शास्त्रों में बहुत महत्व दिया गया है. इस पोस्ट में आप जानेंगे गुरू के पूजन की सरल विधि. गुरु पूर्णिमा को देवगुरु बृहस्पति और सूर्य को प्रसन्न करने के उपाय. गुरू और सूर्य विद्याग्रहण, विवाह, करियर और व्यापार को प्रभावित करते हैं. इसकीबाधाएं मिटाने वाले उपायों के आरंभ करने के लिए उत्तम अवसर है गुरु पूर्णिमा. आप उनके बारे में भी इस पोस्ट में जानेंगे.

गुरु पूर्णिमा पर पांच मिनट के ऐसे उपाय जिन्हें आप प्रतिदिन के जीवन में शामिल कर लें तो बदलाव दिखने शुरू हो सकते हैं. उन सबके बारे में इस पोस्ट में जानेंगे. गुरू पूर्णिमा के लिए यह पोस्ट बहुत काम की सिद्ध होगी.

गुरू कौन?

सबसे पहले तो यह जानें कि गुरू हैं कौन? किसे गुरू मानना चाहिए, किसके लिए श्रद्धापूजन आज रखना चाहिए? इसके लिए शास्त्रों में आए दो श्लोकों से आपको परिचित कराता हूं.

श्लोकः
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा। शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः॥

अर्थः
प्रेरणा देनेवाले, सूचना देनेवाले, सत्य बताने वाले, मार्ग दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले एवं बोध कराने वाले- ये सब गुरु समान हैं.

श्लोकः
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते। अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥

अर्थः
‘गु’कार यानी अंधकार, ‘रु’कार यानी तेज. ज्ञान का प्रकाश देकर अंधकार को दूर करता है, वही गुरु कहलाता है.

प्राचीनकाल में जब विद्यार्थी गुरू के आश्रम में रहकर निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो शिक्षा पूरी होने बाद वे गुरू पूर्णिमा श्रद्धाभाव से अपने गुरू का पूजन करने के बाद उन्हें अपने सामर्थ्यानुसार गुरूदक्षिणा देकर कृतकृत्य होते थे. गुरूकुल से वे धर्मनिष्ठ रहने का आदेश लेकर विदा होते थे. उसी परंपरा का निर्वहन आज होता है. संगीत और कला से जुड़े लोग, धर्मशिक्षा से जुडे लोग और गुरुमुख लोग गुरू पूर्णिमा को अपने गुरू का श्रद्धाभाव से पूजन करते हैं.

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गुरू पूर्णिमा को गुरू पूजन कैसे करें-

यदि आप गुरू के पास हैं तो स्नान आदि के बाद, उत्तम उपहार, प्रसाद आदि लेकर गुरू के पास जाएं. उनके चरण पखारें, उत्तरीय या गमछे से उनके पांव पोछें. फिर माला अर्पण करने के बाद दीपक जलाकर आरती करें. फिर दंडवत होकर उनका आशीर्वाद लें और उन्हें भेंट अर्पित करें.

यह भाव पूजा है. इसमें भाव की प्रधानता है, विधि की नहीं. यदि पूजन करते समय मंत्र पढ़ना चाहते हैं तो यह मंत्र पढ़ सकते हैं-

“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः”

इस मंत्र से गुरू की वंदना करके फिर व्यासजी का स्मरण कर लेना चाहिए.

“गुरु परंपरा सिद्ध्यर्थं व्यास्पूजां करिष्ये “

श्रीव्यासजी, ब्रह्माजी, शुक्रदेव आदि देवताओं का स्मरण करके मन में यह सोचें कि मैं अपने गुरू में इन सभी को देख रहा हूं. मेरे गुरू के पूजन से इन सबकी पूजा हो जाए. फिर यह मंत्र कहें-

गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुदेवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।

यदि आप गुरू के समक्ष नहीं हैं तो भी उनकी पूजा कर सकते हैं. अपने गुरू की छवि या चित्र के समक्ष ऊपर बताई गई विधि से पूजा-प्रार्थना करें. गुरू के निमित्त जो दान या भोजन आदि का विचार किया था वह किसी योग्य व्यक्ति को खिला दें. गौमाता की सेवा करके उनका आशीर्वाद लें.

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भाग्य बदलने वाली हो सकती है गुरू पूर्णिमा, करें ये सरल उपायः

गुरू पूर्णिमा का ज्योतिष में भी बहुत महत्व बताया जाता है. बृहस्पति देवताओं के गुरू हैं. इसलिए बृहस्पति से जुड़े उपाय इस दिन किए जाएं तो उसका विशेष फल होता है. जिनकी कुंडली में बृहस्पति खराब है उन्हें गुरू पूर्णिमा को बृहस्पति ग्रह को प्रसन्न करने के कुछ सरल उपाय कर लेने चाहिए.

ज्योतिष में गुरु ग्रह को आर्थिक स्थिति, विवाह, ज्ञान आदि का कारण माना जाता है. बहुत परिश्रम करने पर भी यदि आर्थिक बाधाएं दूर नहीं होतीं, विवाह की बात बनते-बनते रूक जाती है तो ऐसे लोग गुरु दोष से पीड़ित माने जाते हैं. उन्हें गुरु पूर्णिमा को कुछ सरल उपाय कर लेने चाहिए जिनका लाभ होता है.

– यदि आप गुरुमुख हैं तो गुरु पूर्णिमा के दिन गुरू का नमन-पूजन करें. यदि आप गुरुमुख नहीं हैं अर्थात आपने किसी को गुरु नहीं बनाया है तो श्रीकृष्ण को जगदगुरू और महादेव को सृष्टि का गुरू समझकर उनकी पूजा करें. श्रीविष्णुजी एवं शिवजी का विशेष पूजन करें.

– जिन विद्यार्थियों को पढ़ाई में लगातार बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है उन्हें गुरु पूर्णिमा के दिन गीता पाठ करना चाहिए. पूरी गीता संभव न हो तो भी गीता के किसी न किसी अध्याय का पाठ कर ही लेना चाहिए.

– यदि गीता पाठ नहीं कर पा रहे तो भगवान श्रीकृष्ण का पूजन कर लें और गाय की सेवा कर लें.

– जिनका भाग्योदय नहीं हो रहा, व्यापार-कारोबार मेहनत करने के बाद भी मंदा चल रहा है, हानि हो रही है उन्हें गुरू पूर्णिमा को किसी जरूरतमंद को पीले अनाज जैसे चने की दाल, बेसन, पीला वस्त्र और पीली मिठाई या गुड़ का दान करना चाहिए.

– जिनकी कुंडली में गुरु की स्थिति अशुभ है उन्हें किसी सदाचारी, विद्वान को पुखराज दान करना चाहिए.

– गुरू धर्म के भी प्रतीक हैं. इसलिए यदि भाग्य साथ नहीं देता तो आपको किसी धार्मिक प्रयोजन में यथासंभव धनदान करना चाहिए. इसके लिए गुरु पूर्णिमा सबसे उत्तम अवसर है.

– बृहस्पति के मंत्र “ऊं बृं बृहस्पतये नमः” का जप करने से गुरू दोष से राहत होती है. यदि आप इस मंत्र को सिद्ध करना चाहते हैं तो गुरू पूर्णिमा सबसे उत्तम दिन है.

– जिनसे भी किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त किया है उनके प्रति गुरू पूर्णिमा को सम्मान का भाव रखना चाहिए. उनके निमित्त उपहार अथवा दान करने से शुभता आती है, लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.

– इस बार गुरू पूर्णिमा रविवार को है. रविवार सूर्य का भी दिन है. विवाह और उत्तम करियर के लिए गुरू के साथ सूर्य भी कारक हैं. इसलिए इस बार सूर्यदेव को जल अवश्य दें.

-यदि सूर्यदेव को प्रतिदिन जल अर्पित करने का शुभारंभ करना चाहते हैं तो गुरू पूर्णिमा इसके लिए सबसे उत्तम दिन है.

-तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर उसमें थोड़ा कुमकुम या रक्तचंदन, थोड़ा गुड़ और थोड़े अक्षत और एक लालफूल रखकर उदय होते सूर्य को जल दें. इससे सूर्य की बाधा दूर होती है. सूर्य ग्रहों के अधिपति हैं. इसलिए यदि सूर्य प्रसन्न हैं तो जीवन की बहुत सी परेशानियां अपने आप दूर हो जाएंगी.

– सूर्यदेव हनुमानजी के गुरू हैं. इसलिए हनुमानभक्तों को, मेष, सिंह, वृश्चिक, मकर, कुंभ राशि वालों को सूर्यदेव के लिए जल अवश्य देना चाहिए. आपके आराध्य के गुरूदेव को प्रसन्न करेंगे तो आराध्य स्वतः प्रसन्न रहेंगे.

– गुरू पूर्णिमा को गायत्री मंत्र की कम से कम एक माला का जप अवश्य कर लें.

– यदि अथक प्रयासों के बावजूद अच्छे परिणाम नहीं मिल रहे, कोई कार्य बिगड जाता है तो गुरु पूर्णिमा को भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के समक्ष या ठाकुरजी के मंदिर में गाय के घी का दीपक जलाएं और अपनी प्रार्थना उनके समक्ष रखें. यह उपाय काम करता है. शीघ्र ही कुछ शुभ प्रभाव नजर आने लगेगा.

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