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तीसरे गुरू हैं- आकाश. जल, वायु और तेज- इन तीनों शक्तियों से परिपूर्ण हैं फिर भी वह स्वयं को इनसे विरक्त यानी मुक्त रखते हैं. चौथे गुरू जल हैं. इनसे मैंने स्वच्छ होना और दूसरों को स्वच्छ करना तथा शीतलता देना सीखा है.
अग्नि मेरे पांचवें गुरू हैं. इनसे मैंने सीखा है कि एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति को समान रूप वाला, तेजस्वी और लालसा से मुक्त होना चाहिए. उसे न तो किसी वस्तु से प्रेम और न ही कोई द्वेष रखना चाहिए.
सूर्य मेरे छठे गुरू हैं. यह धरती को बिना भेद-भाव अपनी ऊर्जा देते हैं. ममता का भाव एक जैसा होना चाहिए, यह मैंने सूर्य से सीखा है. चंद्रमा मेरे सातवें गुरू हैं.
चंद्र की कलाएं घटती बढ़ती रहती हैं लेकिन ये कभी भी शीतलता को नहीं त्यागते, अमावस की विपत्ति काल हो या पूर्णिमा का उन्नति काल. सुख हो या दुख एक जैसा बर्ताव रखो यह मैंने चंद्रमा से सीखा.
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