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भृगु को बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने तो भगवान की परीक्षा लेने के लिए यह अपराध किया था परंतु भगवान तो दंड देने के बदले मुस्करा रहे थे. उन्होंने निश्चय किया कि श्रीहरि सी विनम्रता किसी में नहीं. वास्तव में विष्णु ही सबसे बड़े देवता हैं.

लौटकर उन्होंने सभी ऋषियों को पूरी घटना सुनाई. सभी ने एक मत से यह निश्चय किया कि भगवान विष्णु को ही यज्ञ का प्रधान देवता समझकर मुख्य भाग दिया जाएगा.

लक्ष्मीजी ने भृगु को अपने पति की छाती पर लात मारते देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध आया. परन्तु उन्हें इस बात पर क्षोभ था कि श्रीहरि ने उद्दंड को दंड देने के स्थान पर उसके चरण पकड़ लिए और उल्टे क्षमा मांगने लगे.

क्रोध से तमतमाई महालक्ष्मी को लगा कि वह जिस पति को संसार का सबसे शक्तिशाली समझती हैं वह तो निर्बल हैं. यह धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्मियों एवं दुष्टों का नाश कैसे करते होंगे?

महालक्ष्मी ग्लानि में भर गई और मन श्रीहरि से उचट गया. उन्होंने श्रीहरि और बैकुंठ लोक दोनों के त्याग का निश्चय कर लिया. स्त्री का स्वामभिमान उसके स्वामी के साथ बंधा होता है.
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