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गर्भधारण में रखें ध्यान, काम की बातेंः
मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना संतान पैदा करने में नहीं देता यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर संतानप्राप्ति की जाय तो संतान परिवार का यश बढ़ाने वाली होती है. संतान प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए. वर्ष में केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी है.
गर्भाधान के लिए समय के विचार पर ध्यान देना बहुत आवश्यक होता है. इससे मनोनुकूल संतान प्राप्त होती है.
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गर्भधारण के लिए समागम के श्रेष्ठ समय का विचार:
-ॠतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13वीं रात्रि वर्जित है.
-यदि पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ॠतुकाल की 8, 10, 12, 14 व 16वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि के शुभमुहूर्त में समागम करना चाहिए.
-यदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल की 5, 7, 9 या 15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए.
-कृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती है.
-रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए.
-सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए.
-रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए.
-हस्त, स्वाति, अश्विनी, मृगशीर्ष, अनुराधा, धनिष्ठा, ध्रुव संज्ञक (तीनों उत्तरा एवं रोहिणी) एवं ज्येष्ठा नक्षत्रों में शुभतिथियों एवं शुभवारों को ऋतुमति स्त्री को स्नान करना चाहिए.
-मृगशीर्ष, रेवती, स्वाती, हस्त, अश्विनी एवं रोहिणी नक्षत्रों में स्नान करने से स्त्री अतिशीघ्र गर्भधारण करती है.
डाण्त, नक्षत्र गडाण्त और लग्न गडाण्त का विचार अवश्य करना चाहिए.
समागम के लिए कुछ रात्रियां निषिद्ध कही गई हैं. उन रात्रियों में समागम से जन्मी संतान योग्य नहीं होती. वह कुल को कलंकित करने वाली होती है.
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जानिए गर्भधारण हेतु समागम के लिए निषिद्ध रात्रियां, अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.
ऋतु स्नान जिस दिन करे वो दिन पहला दिन गिना जायेगा की नही जय श्री राम