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किसान नौकरों पर नजर रखने के लिए रोज आने लगा. खेत-गौशाला के साथ वह बाग-बगीचों के चक्कर भी लगाने लगा. वहां की व्यवस्था भी सुधरी. घर पहुंचकर दिन हिसाब-किताब लेते बीतता. इस तरह घर में होने वाली बेकार की जमघट बंद हो गई. किसान की आमदनी बढ़ गई.
हंस की तलाश में जल्दी उठने और घूमने-फिरने से किसान का स्वास्थ्य सुधर गया. उसके बच्चे भी साथ घूमने लगे. वे भी तंदुरूस्त हो गए. किसान का धन तो बढ़ा लेकिन उसे हंस नहीं दिखा. उसने कुछ दिन तक और हंस को तलाशा पर हंस मिला नहीं.
शिकायत करने किसान महात्माजी के पास पहुंचा. महात्माजी ने कहा, ‘किसान, तुम्हें हंस के दर्शन तो हो गए बस तुम उसे पहचान नहीं पा रहे. धन बढ़ाने वाला वह हंस है तुम्हारा परिश्रम. तुमने परिश्रम किया, जिसका लाभ अब तुम्हें मिलने लगा है.’
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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