इंद्र बृहस्पति से क्षमा मांगने उनके घर गए लेकिन अपमानित देवगुरू कहीं अंतर्ध्यान हो चुके थे. देवताओं के गुरू रुष्ट होकर उनका त्याग कर चुके हैं, यह सूचना असुरों तक पहुंची.

दैत्यगुरू शुक्राचार्य ने असुरों से कहा कि अपने गुरु व संरक्षक से हीन होने के कारण देवता शक्तिहीन हो गए होंगे. इसलिए देवलोक पर आक्रमण करने का यह अच्छा अवसर है.

असुरों ने स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी और देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया. देवता ब्रह्मा के पास गए और उनसे संकट से निकलने का उपाय बताने की विनती की.

ब्रह्मा जी ने कहा- गुरुविहीन होने के कारण आप अपनी शक्ति फिर से संगठित नहीं कर पाएंगे. इंद्र ने अपने अभिमान में बृहस्पति को खो दिया है. गुरू को मनाकर ले आइए तभी कल्याण होगा.

इंद्र ने बताया कि देवगुरू से क्षमा मांगने गए थे लेकिन अपनी शक्तियों से वह ऐसी जगह चले गए हैं जहां का पता लगाना हमारे बस का भी नहीं है.

बहुत खोजने पर भी बृहस्पति का पता नहीं चला है. उन्होंने ब्रह्माजी से इस संकट से उबारने की बार-बार विनती की. ब्रह्मा ने कोई नया देवगुरू नियुक्त करने का सुझाव दिया.

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