आपने ब्रह्मराक्षस के बारे में शायद कहीं सुना हो। ब्रह्मराक्षस के साथ एक महातांत्रिक के काशी के श्मशान में चौदह रात्रि तक चले संग्राम की सत्यकथा लेकर आए हैं। ब्रह्मराक्षस के साथ महातांत्रिक के इस संग्राम के गवाह हैं कुछ इंजीनियर। पढ़ें इसे, बुरी शक्तियों से आपको निडर बनाने के लिए ये कथाएं लेकर आते हैं।

घटनास्थल है काशी क्षेत्र। जहां महातांत्रिक की साधना स्थली थी। एक दिन वह ध्यान में बैठे हुए थे। तभी बनारस-मिर्जापुर हाईवे पर काम कर रहे एक प्रोजेक्ट के मुख्य इंजीनियर अपने एक परिचित के साथ उनकी कुटिया में पहुंचे। उन्होंने बताया कि जिस प्रोजेक्ट पर वह काम कर रहे हैं। वहां एक स्थान पर दो ब्रह्म-राक्षसों ने उत्पात मचाया हुआ था।

कई औघड़ों को उन दोनों ने परास्त कर दिया था। वे इतने प्रबल थे कि औघड़ उनसे लड़ने के बाद अपनी विद्या गंवा बैठते तथे उनसे लड़ने के बाद वे खाली हो जाते थे यानी अपनी सारी विद्या गंवा बैठते थे। इसलिए कोई अब वहां जाना नहीं चाहता था। दोनो ब्रह्मराक्षसों का अहंकार लगातार बढ़ता जा रहा था।  वे दोनों जैसा चाहते  वैसा ही करते। सड़क नहीं बनने देते थे। वहां तीन वर्षों तक काम ठप्प रहा।

ब्रह्मराक्षस के साथ महातांत्रिक का संग्राम

धार्मिक व प्रेरक कथाओं के लिए प्रभु शरणम् के फेसबुक पेज से जु़ड़े, लिंक-

[sc:fb]

प्रभु शरणं के पोस्ट की सूचना  WhatsApp से चाहते हैं तो अपने मोबाइल में हमारा नंबर  9871507036 Prabhu Sharnam के नाम से SAVE कर लें. फिर SEND लिखकर हमें इसी पर WhatsApp कर दें. जल्दी ही आपको हर पोस्ट की सूचना  WhatsApp से मिलने लगेगी. यदि नंबर सेव नहीं करेंगे तो तकनीकि कारणों से पोस्ट नहीं पहुँच सकेंगे.

 

जब बात नहीं बनी तो मुख्य इंजीनियर किसी के साथ महातांत्रिक के पास आया। अपनी व्यथा सुनायी। महातांत्रिक किसी की रोजी-रोटी नहीं खराब होने देना चाहते थे। अतः तैयार हो गए। वे अगले दिन उस इंजीनियर के साथ वहीँ पहुंचे। जहाँ ये बाधा आयी हुई थी। क्या ट्रक और क्या बुल्डोज़र सभी ऐसे सरक जाते थे, कि जैसे खिलौने हों। ऐसा तीन वर्षों से हो रहा था।

मुख्य इंजीनियर की नौकरी पर बात आने वाली थी। बहुत परेशान था बेचारा। हालांकि पहले ऐसी बातों को दरकिनार किया करता था। यक़ीन नहीं था उसको। पर जब बहुत जतन करके हार गया तब विवश हो गया। उसको किसी ने बताया था। महातांत्रिक के बारे में और इसीलिए आया था वो।

मुख्य इंजीनियर के साथ महातांत्रिक जा पहुंचे वहाँ। उन्होंने देखा वहाँ दो वृक्ष थे। बड़े बड़े कई सौ वर्षों पुराने। यहीं थे वो दोनों ब्रह्म-राक्षस। यहाँ तो द्वन्द सम्भव नहीं था। अतः उन्होंने उनको ही अब वहीँ उनके स्थान पर आमन्त्रित करने की सोची।
आराम से और सुलभता से तो मानने वाले वो थे नहीं। अतः उन्होंने उन पेड़ों के मध्य में मूत्र-त्याग कर दिया और अपना चिन्ह अंकित कर दिया। इसके बाद महातांत्रिक अपने स्थान पर वापस हो गए।

[irp posts=”6707″ name=”तांत्रिक के फेर से महाकाली ने मासूम को बचाया(सत्यकथा)”]

 

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here