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तानसेन ने दो कौड़ियों के बारे में पूछा तो विठ्ठलनाथ बोले- आप मुगल दरबार के मुख्य गायक हैं इसलिए हजार रूपये का ईनाम आपके ओहदे को देखते हुए था. ये दौ कौड़ियां मेरी ओर से आपका गायन की सच्ची कीमत है.
तानसेन आगबबूला होने लगे. विठ्ठलनाथजी ने धैर्य रखने को कहते हुए गोविंदस्वामी जी को गायन आरंभ करने का इशारा किया. गोविंदस्वामी ने एक भजन छेड़ा. वह भक्ति में विभोर हो गए. पीछे-पीछे तानसेन समेत वहां बैठे सभी लोग झूमने लगे.
गीत समाप्त हुआ तो जैसे तानसेन की तंद्रा टूटी. गोविंदस्वामीजी को प्रणाम करने के बाद वह विठ्ठलस्वामी के सामने नतमस्तक हो गए और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगते हुए कहा आपने मेरी सच्ची कीमत लगाई थी.
विठ्ठलस्वामी बोले- तानसेन तुम उच्च कोटि के गायक हो. माता सरस्वती की तुमपर विशेष कृपा है लेकिन तुमने अपना सारा संगीत अकबर को खुश करने के लिए समर्पित कर दिया है. तुम्हारा दायरा बहुत छोटा हो चुका है.
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