राजा ने पूछा- तुम कैसे बड़ी हो? वह भी बता दो. नींद बोली, लोग मेरे लिए पलंग बिछवाते है, उस पर बिस्तर डलवाते हैं. जब मुझे बिस्तर बिछाकर देते हैं तब सोती हूं, नहीं तो सोऊं ही नहीं.

राजा ने सेवकों से कहा, राज्य में यह मुनादी करा दो कोई पलंग न बनवाए, उस पर गद्दे न डलवाये और बिस्तर बिछा कर भी न रखे. देखें नींद को नींद आएगी तो वह जाती कहां है?

दिन में तो ठीक रहा. आधी रात बीत गई. नींद उसे भी झेल गई लेकिन उसके बाद नींद को नींद आने लगी. उसने खूब ढूंढा लेकिन बिस्तर कहीं नहीं मिला. हारकर वह ऊबड़-खाबड़ जमीन पर ही लेट गई.

आशा ने राजा को खबर दी. उसने स कहा- नींद भी हार गयी. नर्म बिस्तर की बात कहने वाली ऊबड़-खाबड़ धरती पर सोई है. वास्तव में भूख, प्यास और नींद, तीनों में मैं बड़ी हूं.

राजा ने पूछा- तुम कैसे बड़ी हो? आशा बोली- लोग मेरी खातिर ही काम करते हैं. नौकरी-धन्धा, मेहनत और मजदूरी करते हैं. परेशानियां उठाते हैं लेकिन आशा के दीप को बुझने नहीं देते.

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