प्यास ने भूख को बासी रोटी खाते देखा, तो दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची और बोली- भूख हार गई. उसने बासी टुकड़े खाए हैं. देखिए, बड़ी तो मैं ही हूं. अब राजा ने उससे पूछा कि तुम कैसे बड़ी हो ?

प्यास बोली- मैं बड़ी हूं. मेरे कारण ही लोग कुएं, तालाब बनवाते हैं. बढ़िया बर्तनों में भरकर पानी रखते हैं और वे जब मुझे गिलास भरकर देते हैं तब मैं उसे पीती हूं, नहीं तो पीऊं ही नहीं.

राजा ने अपने सेवकों से कहा- मुनादी करा दो कि कोई भी अपने घर में पानी भरकर नहीं रखे. किसी को गिलास भरकर पानी न दे. कुएं-तालाबों पर पहरे बिठा दो. प्यास को प्यास लगेगी तो देखे कहां जाती है?

सारा दिन बीता, आधी रात बीती. प्यास को प्यास लगी. वह यहां दौड़ी, वहां दौड़, लेकिन पानी की कहीं एक बूंद न मिली. लाचार होकर वह एक ताल पर झुककर पानी पीने लगी.

नींद ने देखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची और बताया कि प्यास हार गई. वह तो ताल पर झुककर पानी पी रही है. मैं बड़ी हूं अब इसमें तो कोई संशय नहीं रह गया अब?

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here