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तो पितामह के मुख से आशीर्वाद निकलता है पुत्री अखंड सौभाग्यवती भव. अब पितामह जैसा अखंड ब्रह्मचारी आशीर्वाद दे वह कैसे फलीभूत न होता!

इस आशीर्वाद के साथ ही भगवान धर्मसंकट से निकल गए. अब वह पितामह के इस वचन और अर्जुन के प्राण दोनों की रक्षा का भार ले सकते थे. प्रसन्न मन वह विश्राम करने लगे.

जब पितामह को पता चला कि जिस स्त्री को उन्होंने आशीर्वाद दिया वह तो द्रोपदी है. भीष्म समझ गए कि यह माया किसकी हो सकती है. वह मुस्कराने लगे.

उन्होंने द्रोपदी से पूछा- पुत्री, केशव कहां है? द्रोपदी बोलीं- बाहर हैं. आपके सैनिक ने अंदर नहीं आने दिया. भीष्म झटपट बाहर गए और देखा सामने एक पेड़ के नीचे द्रोपदी की चप्पल सिरहाने रखकर प्रभु आराम से सो रहे थे.

भीष्म पितामह भगवान के चरणों में गिर पड़े और बोले- प्रभु जिस भक्त की चप्पल आपने अपने सिरहाने रख ली, उस भक्त का संसार में ऐसा कौन है जो कुछ बिगाड़ सकता हो!

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