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महाभारत के युद्ध में दुर्योधन ने भीष्म पितामह पर बार-बार यह आक्षेप लगाना शुरू किया कि वह पांडवों का पक्ष ले रहे हैं और जिस सेना के सेनानायक हैं उसके प्रति निष्ठावान नहीं है.
इन आरोपों से आहत भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा की कि अगले दिन के युद्ध में वह पांडवों को या तो मार डालेंगे या युधिष्ठिर को बंदी बनाकर युद्ध समाप्त कर देंगे.
परशुराम शिष्य भीष्म पितामह युद्ध का निर्णय करने में समर्थ थे. भगवान श्रीकृष्ण को इस प्रतीज्ञा की भनक लगी तो भगवान धर्म संकट में आ गए. एक ओर भक्त भीष्म की प्रतिज्ञा थी दो दूसरी ओर अतिप्रिय अर्जुन के प्राण संकट में थे.
भगवान को नीद नहीं आ रही थी. वह बेचैनी में टहल रहे थे. आधी से ज्यादा रात बीत गई. भगवान ने सोचा प्रतिज्ञा तो अर्जुन ने भी सुनी होगी अर्जुन को भी नीद नही आ रही होगी. जाकर देखता हूं.
भगवान जैसे ही अर्जुन के शिविर में गए तो देखा अर्जुन तो खराटे मार-मार कर सो रहे है. भगवान ने कहा- अर्जुन कल पितामह ने तुम्हारे वध का प्रण लिया है फिर भी तुम चैन की नीद सो रहे हो?
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