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राजा को भरोसा हो गया कि शत्रु उसको मार नहीं सकते. वह दरबार भी कम ही जाता. ज्यादा समय सुरक्षित महल में बिताता. राजकाज मंत्रियों के हवाले हो गया और लूट-खसोट मच गई.

एक संन्यासी दरबार में आए. वह राज्य की स्थिति बताना चाहते थे लेकिन राजा को तो दरबार में डर लगता था. वह उन्हें किसी बहाने महल में ले आया और पूरा महल दिखाया.

महल दिखाकर राजा ने पूछा- महल कैसे लगा? संन्यासी ने कहा- सुंदर है, सुख के सारे प्रबंध हैं पर एक भूल हो गई. इसमें दरवाजा नहीं होना चाहिए था. दरवाजे से दुश्मन तो नहीं आएंगे लेकिन मौत आ गई तो!

इस दरवाजे को भी अच्छे से बंद करके बैठ जाइए तभी पूरी तरह सुरक्षित होंगे. राजा उस तंज का अर्थ समझ गया. उसने क्षमा मांगी.

संन्यासी ने कहा- वही राजा सुरक्षित है जिसके लिए प्रजा प्राण त्यागने में संकोच न करे. मृत्यु का प्रवेश दरवाजे-खिड़कियों से नहीं रोका जा सकता. मृत्यु का प्रवेश रोका जा सकता है मन से मृत्यु का भय मिटाकर.

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