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युवक ने उत्तर दिया- प्रभु मैं तो अज्ञानी हूं लेकिन मैं तो यह सोचता हूं जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र में उपदेश दे रहे हैं तो मुझे और कुछ समझ में नहीं आता. प्रभु का उपदेश है यही सोचकर मैं भाव विभोर हो जाता हूं और आंसू निकल आते हैं.
महाप्रभु उसकी बात सुनकर भाव विभोर हो गए और उसे गले से लगाकर शिष्यों से बोले- गीता का यथार्थ तो बस व्यक्ति ने समझा है, बाकी तो सब इसे सुन रहे हैं.
बुद्धि बेशक बहुत उपयोगी है, सबसे भरोसेमंद साथी लेकिन प्रभु को पाने के लिए बुद्धि से अधिक समर्पण का महत्व है. भक्ति के आगे भावनात्मक बुद्धिमता तो पीछे ही छूट जाती है.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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Bahut acha.