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व्रत तोड़ने का मुहूर्त निकला जा रहा था. गुरु वरिष्ठ ने अंबरीश से कहा कि वह व्रत तोड़ दें. गुरू के आग्रह पर अंबरीश ने तुलसी के पत्ते से उपवास तोड़ा और दुर्वासा की प्रतीक्षा करने लगे.

तभी दुर्वासा आ पहुंचे. उन्हें लगा कि अंबरीश ने उनका वचन नहीं रखा और उनके भोजन ग्रहण करने से पहले खुद कैसे भोजन ग्रहण कर लिया. जबकि अंबरीश ने भोजन नहीं किया था सिर्फ तुलसी का पत्ता खाकर व्रत तोड़ा था.

क्रोध से कांपते दुर्वासा ने अपनी जटा से एक भयंकर राक्षस पैदा किया और उसे अंबरीश का वध करने का आदेश दे दिया. अंबरीश दुर्वासा से क्षमा मांगते रहे लेकिन उन्होंने तो जिद पकड़ ली थी.

हारकर अंबरीश ने नारायण का स्मरण किया. भगवान नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि भक्त अंबरीश का अहित करने वाले का वध कर दो. सुदर्शन चक्र ने राक्षस का वध करके अंबरीश की रक्षा की.

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