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नारद ने उसका कलेजा ले जाकर भगवान के सामने रख दिया. भगवान ने कहा- नारद यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है. जो भक्त मेरे लिए कलेजा दे सकता है उसके लिए मैं भी अपना विधान बदल सकता हूँ.
तुम्हारी अपेक्षा उसे मैंने संतान के वरदान का श्रेय क्यों लेने दिया उसका कारण समझो. जब कलेजे की जरूरत हुई तब तुमने अपना कलेजा निकाल कर नहीं दिया.
तुम भी तो भक्त थे. तुम दूसरों से माँगते फिरे और उस महात्मा ने बिना आगा पीछे सोचे तुरन्त अपना कलेजा दे दिया. त्याग और प्रेम के आधार पर ही मैं अपने भक्तों पर कृपा करता हूँ और उसी अनुपात से उन्हें श्रेय देता हूँ.
नारद ने लज्जा से सिर झुका लिया. श्रीहरि उनके साथ उस महात्मा के पास पहुंचे और उन्हें जीवित कर दिया.
संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली
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