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पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन ये सब मन को शांति देते हैं. मंदिर में हम स्वयं को ईश्वर के आगे समर्पित कर देते हैं. संसार के जीव ईश्वर की संतान हैं. माता-पिता तब ज्यादा प्रसन्न होते हैं जब कोई उसकी संतान के प्रति अनुराग रखता है.

यदि हम जीवों के प्रति दया और सेवा का भाव रखकर परोपकार पर बढ़ते रहें तो वह किसी भी भजन-कीर्तन से कहीं ज्यादा है. मौसम के तेवर बदलकर ईश्वर अपनी संतानों को थोड़ा कष्ट देते हैं जैसे माता-पिता बच्चों को डांटते-डपटते हैं.

आप यह संकल्प लें कि आप जहां भी हैं, जो भी काम करते हैं वहां यदि कोई जरूरतमंद और परेशानहाल आए तो उसके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करके उसकी सहायता करेंगे. ईश्वर की यह भी सच्ची भक्ति है.

संकलनः नीलम शर्मा
संपादनः राजन प्रकाश

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