उम्र बढ़ने के साथ धुंधुकारी व्यभिचार में लिप्त होकर वेश्यागमन करने लगा. इससे आत्मदेव की प्रतिष्ठा तार-तार होने लगी. आत्मदेव फिर से शोक में डूब गए.
गोकर्ण से आत्मदेव का दुःख देखा न गया. उसने उन्हें वैराग्य का उपदेश दिया. जगत को नश्वर और पुत्र, स्त्री व धन को मोह-माया का बन्धन बताते हुए सभी दुःखों का कारण बताया.
सुख की प्राप्ति के लिए उपदेश देकर गोकर्ण ने आत्मदेव को मोक्ष की प्राप्ति हेतु वनगमन करने की सलाह दे डाली।
गोकर्ण से वैराग्य का उपदेश लेकर आत्मदेव वैराग्य धारण कर वन की ओर प्रस्थान कर गए. वन में भगवत् साधना करते हुए उन्हें परम धाम की प्राप्ति हो गयी.
पिता के नहीं रहने से धुंधली ने कैसे व्याभिचार की सीमाएं लांघ ली. वेश्याओं ने उसकी हत्या की और वह प्रेत बन गया. तब गोकर्ण ने कैसे उसे प्रेत योनि से मुक्ति दिलाई. शेष कथा अगले पोस्ट में.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्