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उसने कहा- हे प्रभु हम जन्म और स्वभाव से ही तमोगुणी और बहुत दिनों के बाद भी बदला लेने वाले-बड़े क्रोधी जीव हैं. जीवों के लिए अपना स्वभाव छोड़ देना बहुत कठिन है. इसी कारण संसार के लोग नाना प्रकार के दुराग्रहों में फंस जाते हैं.

आप सर्वज्ञ और सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं. हम सर्पों और विषधरों को जो स्वभाव मिला है वह आपकी माया ही है. अब आप अपनी इच्छा से, जैसा उचित समझें, करें. आप कृपा करें या दण्ड दें, मेरे लिए तो दोनों में कल्याण है. सहर्ष स्वीकार है.

प्रभु ने उसे यमुना का त्याग करने का आदेश दिया और एक अन्यत्र सुरक्षित स्थान दे दिया. कालिया नाग कौन था. वह यमुना में क्यों रहता था. प्रभु ने उसे कौन सा स्थान दिया. यह सब प्रसंग आपको कल सुनाएंगे.

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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