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वह अब अग्नि बरसाने लगा. उधर यमुना तट पर गोकुलवासी समस्त देवताओं का आह्वान करने लगे. कालिया अपने जिस शरीर को नहीं झुकाता था. भगवान उस पर सवार हो गए और अपने पैरों की चोट से कुचलने लगे.
कालिया नाग की जीवनशक्ति क्षीण हो चली. वह मुंह और नथुनों से खून उगलने लगा. प्रभु के आघात से अन्त में चक्कर काटते-काटते वह बेसुध हो गया. अपने पति की यह दशा देखकर उसकी पत्नियां भगवान् की शरण में आयीं.
वह श्रीकृष्ण से अपने पति के प्राणों की याचना करने लगीं. वे बोलीं- प्रभु आप तो दयानिधान हैं. ये मूढ हैं, आपको पहचानते नहीं, इसलिए इन्हें क्षमा कर दीजिए. भगवन कृपा कीजिए. इनको जीवनदान दें प्रभु. हम नाग आपके सदा सेवक रहेंगे.
दुष्ट कालिया की पत्नियों की याचना से भगवान पिघल गए. उन्होंने कालिया को मृत्युदण्ड देने का विचार त्याग दिया. भगवान के प्रहारों से आहत कालिया का दंभ भी टूट चुका था.
प्रभु ने उस पर दृष्टि डाली तो धीरे-धीरे कालिया की इन्द्रियों और प्राणों में कुछ-कुछ चेतना आ गई. वह बड़ी कठिनता से श्वास लेने लगा. सचेत होने पर बड़ी दीनता से हाथ जोड़कर भगवान् श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगा.
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