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धन, विद्या और सौंदर्य के अभिमान में चूर मैं अपने विमान में बैठकर विचरण किया करता था. एक दिन मेरी नजर अंगिरा गोत्र के कुछ कुरूप मुनियों पर पड़ी. रूप के गर्व मैं मैंने उनका बड़ा अपमान कर दिया.

ऋषियों ने मुझे समझाया कि किसी के रूप का उपहास नहीं करना चाहिए किंतु मद में चूर होकर मेरा विवेक शून्य हो गया था. मैं अपनी आदत से बाज नहीं आया और उनका माखौल करता रहा.

क्रोधित होकर मुनियों ने मुझे शाप दे दिया कि तुम संसार भरमें घूमकर अपने रूप पर इतराते हो इसलिए तुम निंदनीय रूप वाले अजगर योनि में चले जाओ और घूमने-फिरने का सामर्थ्य क्षीण हो जाए. तब से मैं शापित होकर यहां पड़ा था.

आपके स्पर्शमात्र से मेरा शाप छूट गया. ऐसा प्रतीत होता है कि उनका शाप मेरे लिए वरदान में परिवर्तित हो गया. प्रभु मैं अब आपकी शरण में हूं, मेरा उद्धार कीजिए. मैं अपने लोक जाने की अनुमति चाहता हूं.

प्रभु का संकेत पाते ही विद्याधर सुदर्शन ने उनकी प्रदक्षिणा की और उचित प्रकार से स्तुति करने के बाद अपने लोक को चला गया. ब्रजवासियों ने प्रभु का यह प्रभाव देख तो उनका गुणगान करते व्रज की ओर चल पड़े.

संपादनः प्रभु शरणम्

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