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राधा जी और सखियों ने कुंड भर लिया लेकिन जब बारी तीर्थों के आवाहन की आई तो राधा जी को समझ नहीं आया वे क्या करें. उस समय श्रीकृष्ण के कहने पर सभी तीर्थ वहां प्रकट हुए

इस प्रकार कहने लगे – मैं लवण समुद्र हूँ. मैं क्षीर सागर हूँ. मैं सुर्दीर्घिका हूँ .मैं शौण. मैं सिन्धु हूँ. मैं ताम्रपर्णी हूँ. मैं पुष्कर हूँ. मैं सरस्वती हूँ. मैं गोदावरी हूँ. मैं यमुना हूँ. मैं सरयू हूँ. मैं प्रयाग हूँ. मैं रेवा हूँ. हम सबों के इस जल समूह हो देखकर आप विश्वास कीजिये.

राधाजी से आज्ञा लेकर तीर्थ उनके कुंड में विद्यमान हो गए. यह देखकर राधाजी कि आंखों से आंसू आ गए और वे प्रेम से श्रीकृष्ण को निहारने लगीं.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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