जीवन के साथ ही हम एक ही चीज अपने साथ ऐसी लेकर आते हैं जो कभी भी बदल नहीं सकती-मृत्यु. मरना है एकदिन यह जीवन के साथ चलने वाला ध्रुवसत्य है मरना चाहता कोई नहीं. मरकर भी अमर हुआ जा सकता है क्या…

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जीवन के साथ मृत्यु का विधान है. इसे कोई नहीं बदल सकता. फिर भी मरना कौन चाहता है? मन जब दुखी हो लोग ऐसा सोचते हैं कि इस जीवन का क्या फायदा.  लेकिन यदि उसी समय सचमुच यम प्रकट हो जाएं प्राण लेने को, तो विचार तुरंत बदल जाएगा. अधिकांश क्षमा मांग लेंगे,कहेंगे वो बस ऐसे ही कह दिया था. आए हैं आप तो अमर होने का वरदान देते जाइए. मृत्यु का भय भी ऐसा है, है न!

वैसे यमराज सोचने से प्रकट हो नहीं जाते. जिसकी जितनी चाभी रामजी ने भरी है, उतना वह चलेगा. प्रकृति के नियम में भगवान भी हस्तक्षेप नहीं करते. आपको एक छोटी सी कथा सुनाता हूं. कथाएं मन को शांति-सुकून देती हैं. मन के कष्टों को कुछ देर के लिए भुलाने में एक खिलौने की तरह काम आती हैं. इसलिए कथाओं का आनंद लीजिए, मन को शांत कीजिए. बाकी संसार तो मोहमाया है ही.

यूनान में एक बहुत बडा मूर्तिकार हुआ. मूर्तिकार की बड़ी ख्याति थी. दूर-दूर के देशों तक उसकी कला के पारखी और प्रशंसक थे. वे उसकी कला देखने आते और दांतों तले उंगलियां दबा लेते.

लोग कहते थे कि अगर वह किसी की मूर्ति बना दे और उस मूर्ति के बगल में वह आदमी सांस रोककर खड़ा हो जाए जिसकी मूर्ति है, तो बताना मुश्किल है कि असली आदमी कौन है और मूर्ति कौन है?

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मूर्तिकार के मौत की घड़ी करीब आई. उसने सोचा कि अपनी कला से क्यों न मौत को ही धोखा दिया जाए? उसने अपनी ही ग्यारह मूर्तियां बनाकर तैयार कर लीं.

जब यमदूत आए तो वह उन ग्यारह मूर्तियों के साथ छिप कर खडा हो गया. यमदूतों ने देखा कि वहां एक जैसे बारह इंसान हैं. यमदूत को भी भ्रम हो गया. एक को लेने आए थे, बारह लोग खड़े हैं. किसको ले जाएं?

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