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बिलाव खुश होकर बोला- मुझे मुक्ति प्रदान करो. मुक्त होकर मैं तुमसे मैत्रीधर्म का पालन करूंगा. अभी मैं तुम्हारा भक्त, शिष्य और शरणागत हूं. मुझपर दया करो. मैं इस उपकार का बदला चुकाउंगा.
दोनों को एक दूसरे से लाभ था इसलिए दोनों ने परस्पर हितों के लिए मैत्री कर ली. चूहा धीरे-धीरे जाल को काटने लगा. चूहे बिलाव की इस संधि से उल्लू और नेवला घबराकर चले गए. तभी बहेलिया आता दिखाई पड़ा.
इससे पहले के कि बहेलिया जाल तक पहुंचे चूहे ने अंतिम बंधन काटा और बिलाव को मुक्त करा दिया. बिलाव पेड़ पर जा बैठा और चूहा अपने बिल में छुप गया. बहेलिया निराश होकर चला गया.
बिलाव ने चूहे से कहा- मित्र तुमने विपत्ति काल में मेरी सहायता की, मुझे जीवनदान दिया. तुम मेरे घर में आओ. मेरा पूरा परिवार तुम्हारा आदर-सत्कार और सेवा करना चाहता है.
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