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याज्ञवल्क्य मुनि से भरद्वाजजी रामकथा सुनाने की विनती करते हैं. उनकी विनती पर याज्ञवल्क्यजी ने श्रीरामकथा आरंभ की है. श्रीराम और शिवजी में आपसी प्रेम और आदर संबंधों का वर्णन करते याज्ञवल्क्यजी शिवजी की कथा भी सुनाते हैं.
कैसे सतीजी ने श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए सीताजी का रूप धरा तो शिवजी ने पत्नी का त्याग कर दिया क्योंकि सीताजी उनके लिए मातृवत और पूजनीया हैं. पत्नी में अब उन्हें माता का स्वरूप दिख गया था. सतीजी पिता के यज्ञ में स्वयं को भस्म कर लेती हैं.
उन्होंने श्रीहरि से अगले जन्म में महादेव को पुनः प्राप्त करने का वरदान लिया है और पर्वतराज हिमवान के घर उनका अवतार हुआ है. पार्वतीजी ने नारदजी की प्रेरणा से महादेव को घोर तप से पतिरूप में प्राप्त करने का निर्णय किया है.
इससे हिमवान और माता मैना अत्यंत विकल हैं. कोमलांगी पुत्री के ऐसे प्रण को सुनकर उनका हृदय बैठा जा रहा है. पार्वतीजी ने माता-पिता को समझा-बुझा लिया है और असाध्य तप के लिए चली हैं. हिमवान को हिम्मत देने के लिए वेदशिरा मुनि का आगमन होता है.
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Jai Gauri Shankar