भक्त की परीक्षा के लिए शिवजी ने धरा था यतिरूप. परीक्षा में खरा उतरने पर भक्त को दिया वरदान. वरदान पूरा करने को महादेव ने लिया हंस अवतार. शिव अवतार की कथाएं.

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शिव अवतार की दो कथाओं, यतिनाथ और हंस अवतार का संबंध नल-दमयंती कथा से है. यतिनाथ के रूप में अवतार लेकर शिवजी ने अपने एक परमभक्त की भक्ति भाव की परीक्षा ली. भक्त परीक्षा में सफल रहे तो महादेव ने प्रसन्न होकर वरदान दिए. वरदान को पूर्ण करने के लिए महादेव ने धरा हंस रूप. शिव अवतार की दोनों कथाओं को जानेंगे.

अबुर्दाचल नामक पर्वत के पास आहुक भील अपनी पत्नी आहुका के साथ रहता था. आहुका बड़ी धर्मपरायण स्त्री थी. पति−पत्नी शिवजी के परमभक्त थे.

एक दिन आहुक अपनी पत्नी के लिए भोजन का प्रबंध करने के उद्देश्य से वन में बहुत दूर निकल गया. संघ्याकाल में भील की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव संन्यासी का रूप धारणकर उसकी झोपड़ी पर आए.

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इतने में आहुक भी घर वापस आ गया. उसने प्रेमपूर्वक संन्यासी यतिराज का सत्कार किया. यतिराज ने भील की परीक्षा लेने के लिए उससे कहा- मैं आज रात यहां विश्राम करना चाहता हूं. सुबह चला जाउंगा.

आहुक बोला− स्वामीजी! मेरे घर में मात्र दो व्यक्तियों के योग्य ही स्थान है. फिर उसमें आपका रहना कैसे हो सकता है?

उसकी बात सुनकर यतिराज जाने के लिए तैयार हो गए. आहुका ने सुना कि अतिथि को जाने के लिए कहा जा रहा है, उसे अनुचित लगा. उसने तत्काल प्रतिरोध किया.

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