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उन्हें आशंका हुई कि सारी लंका तो जला डाली, कहीं ऐसा तो नहीं कि उससे आग वन में चली गई हो और माता सीता भी कहीं जल गई हों.
बजरंग बली के मन में भय हुआ कि जिसकी सूचना लेने आए थे, कहीं उसका अनिष्ट तो नहीं कर दिया.
उन्हें इस बात ध्यान ही न रहा कि जिसकी आज्ञा से अग्नि ने उनकी पूंछ न जलाई, वह भला स्वयं सीताजी को क्या जलाएंगे!
भोले-भाले मन वाले बजरंग बली फिर तुरंत भागे लंका माता की सुधि लेने. हालांकि उनके मन में यह ख्याल यह भी आ रहा है कि सीताजी पर अग्नि का भला क्या प्रभाव होगा परंतु माता ने उन्हें पुत्र कहकर संबोधित किया था.
इसलिए उस समय उनके मन में पुत्ररूप वाला भाव आ रहा था. संकटकाल में मन के कोमल भाव सबसे ज्यादा पुष्ट हो जाते हैं. परिजनों के लिए पीडा उभरती है इससे हनुमानजी भी मोहित हो गए हैं.
बजरंग बली धर्मसंकट में हैं कि माता के सम्मुख जाएं भी तो जाएं कैसे? आखिर क्या बहाना बनाया जाए.
वह यह कैसे कहेंगे कि मैं यह देखने आया हूं कि आप तो लंका की आग में भस्म नहीं हुई. अग्नि श्रीराम से बैर मोलने की हिम्मत कर नहीं सकते.
इस धुन में खोए पवनसुत फिर से अशोक वाटिका पहुंचे और कहा कि आपसे आज्ञा लेने आया हूं.
माता तो अंतर्यामी ठहरीं. हनुमानजी को सकुशल देखकर वह बड़ी प्रसन्न हुईं, सब समझ गईं. सर्वप्रथम उन्होंने अग्निदेव का आभार व्यक्त किया.
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