राक्षसों ने बजरंग बली की पूंछ में कपड़ा और तेल लपेटकर पूरी लंका में घुमाया. इस प्रकार हनुमानजी ने पूरी लंका देख ली. सीताजी को भी सूचना मिली कि रावण हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने वाला है. इससे वह बहुत व्यथित हुईं.

माता ने अग्निदेव की प्रार्थना की. अग्निदेव प्रकट हुए तो माता ने कहा- अग्निदेव यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूं तो आप मेरे पुत्र हनुमान को अपने तेज से पीड़ित मत कीजिएगा.

अग्निदेव ने कहा- ऐसा ही होगा माता. आप चिंता न करें. आपने जिसे पुत्र माना है वह श्रीराम का कार्य करने आए हैं. उनके कार्य में बाधा हो ही नहीं सकती.

हनुमानजी ने पूरी लंका का निरीक्षण कर लिया उसके बाद घूम-घूमकर पूरी लंका जला दी.

माता की कृपा से पूंछ में आग लगने के बावजूद हनुमानजी की पूंछ नहीं जली. हनुमानजी ने लंका में दो घर छोड़ दिए.

एक घर विभीषण का, क्योंकि वह रामभक्त थे. दूसरा कुंभकर्ण का. जब वह कुंभकर्ण के महल पहुंचे तो कुंभकर्ण गहरी नींद में सो रहा था.

उसकी पत्नी ने हनुमानजी से विनती की कि उसके पति गहरी निद्रा में सो रहे हैं. वह इस अपराध में सम्मिलित ही नहीं हैं. श्रीराम तो न्यायप्रिय हैं. किसी को अकारण दंड नहीं देते.

उसने कहा कि सीताहरण में उसके पति की सहमति ही नहीं हैं क्योंकि वह तो सो रहे हैं. उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं. हनुमानजी ने उसका महल भी नहीं जलाया.

पवनसुत तसल्ली से पूरी लंका जला फिर भी अग्नि अभी शेष थी. पूंछ की आग बुझाने के लिए पवनसुत समुद्र में गए. आग बुझाते समय उन्हें अचानक बड़ा पछतावा हुआ. उन्हें लगा कि मैंने पूरी लंका जला दी कहीं अनर्थ तो नहीं हो गया.

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