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माघ शुक्ल सप्तमी का व्रत सूर्य की आराधना को समर्पित है. इसलिए इसे सौर सप्तमी भी कहते हैं. सूर्य आरोग्यदायक हैं.
सूर्य की उपासना से त्वचा, हृदय और नेत्र संबंधी रोग ठीक होते हैं. इसीलिए माघ शुक्ल की सप्तमी को अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी या आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है.
इस दिन सूर्यदेव की उपासना आरोग्य प्रदान करने वाली होती है. सूर्य सप्तमी व्रत के विषय में यह भी मान्यता है कि इस व्रत के करने से मिलने वाला पुण्य वर्ष भ्रर के सभी रविवार के व्रत के पुण्य के बराबर होता है.
आइए जानते हैं- माघ शुक्ल सप्तमी के सूर्य व्रत की कथाः
भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्वंती को संतानहीन होने के शोकग्रस्त रहती थीं. जाम्वंती ने अपनी व्यथा श्रीकृष्ण से कही तो उन्होंने भगवान शिव की आराधना करने को कहा.
महादेव ने जाम्वंती से कहा कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हो सकती परंतु श्रीकृष्ण के संतान रूप में आने की उनकी स्वयं की इच्छा है इसलिए वह स्वयं जन्म लेंगे.
श्रीकृष्ण और जाम्वंती के पुत्र हुए शाम्ब. शाम्ब को अपने बल और शारीरिक सौष्ठव का अभिमान हो गया था. बल के अभिमान में चूर रहते हुए वह किसी का भी सम्मान नहीं करते थे.
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