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कहते हैं कि आरुषी इतनी तेजस्विनी थीं कि उनकी रक्षा के लिए स्वयं देवराज इंद्र उनके पीछे-पीछे चल रहे थे. आने वाले खतरे से डरी हुई आरूषी बेतहाशा भाग रही थी कि एक पेड़ की डाल से उनके पेट पर गहरी चोट लग गयी.

चोट लगने से आरुषी बेहोश हो गयीं. उन्होंने समय पूर्व ही एक बालक को जन्म दे दिया. विपत्ति में देवयोग से पास में स्थित एक आश्रम में उन्हें शरण मिल गयी और वहां उनकी सेवा टहल हो सकी.

आरुषि ने अपने बेटे का नाम और्व रखा. थोड़ा बड़ा होने पर उसने अपनी माता से उनकी इस दुर्गति का कारण पूछा तो आरुषि ने सब बता दिया. तभी से और्व रुषि के मन मेँ क्षत्रियोँ, क्षत्रपों के लिये कट्टर वैरभाव का जन्म हुआ.

किशोरावस्था पार करते-करते और्व ने अपने समुदाय के ऊपर अत्याचारों की इतनी कथा सुनी कि उसने यह फैसला कर लिया कि वह इसका बदला ज़रूर लेगा. और्व ने इसके लिए घोर तप करना शुरू कर दिया.

और्व का तप किसी देवी देवता या किसी तरह के वरदान को लेकर नहीं बल्कि क्रोध और प्रतिशोध को लेकर था जिसे वह अपने पूरे शरीर और व्यक्तित्व में समेट लेना चाहते थे.
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