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हनुमान जी बोले, महर्षि आप चिंता न करें इसको मैंने अभी भगवान शंकर को प्रस्तुत नहीं किया है. इसे आप के अलावा किसी और ने भी नहीं देखा है. आप ही अपनी रामायण पहले प्रस्तुत करें. इस तरह से आप की रामयण पहली मानी जायेगी. मैंने तो प्रभु की याद में जो विचार आये वह लिख दिया है मेरी प्रसिद्धि पाने या इस प्रकार की कोई इच्छा नहीं है.
वाल्मीकि जी बोले, हनुमत, बात पहले लिखने की नहीं है, आपकी रामायण देखकर लगता है कि इसके आगे मेरी रामायण को कोई नहीं पूछेगा, वह चाहे कविता,साहित्य रचने का मामला हो या कथा विस्तार, आस्था अथवा भरोसेमंद होने का. सच यही है कि आपने जो लिखा है उसके सामने मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है.
हनुमान जी ने वाल्मीकिजी की चिंता दूर करने के लिये उन्हें बहुत समझाया पर वाल्मीकि जी को लगता था इस हनुमद रामायण के चलते उनका पूरा जीवन और जीवन भर की जोड़ी कमाई ही चली गयी. उनकी निराशा दूर न हुई. तब श्री हनुमानजी ने जिन पत्थरों पर हनुमद रामायण उकेरा गया था उन सबको एक जगह इकट्ठा कर लिया.
हनुमान जी ने हनुमद रामायण को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाया. वे कैलाश से उड़े तो सीधे समुद्र के पास जा कर उतरे. वाल्मीक जी को उतारा और अपनी रचना अपने भगवान प्रभु श्रीराम को समर्पित करते हुए गहरे समुद्र में ले जा कर डाल दिया.
तट पर खड़े वालमीकि हनुमानजी द्वारा अपनी रामायण को गहरे समुद्र में प्रवाहित करना देख अचरज से भर गये.
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