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राजा को यह ज्ञात था कि उसे मृत्यु देने के लिए आने वाला सर्प कहां रहता है. वह अपने सेवक भेजकर उस सर्प को वहीं मरवा सकता था. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.

सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया. संध्या होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ जिसमें सर्प रहता था, वहां से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया.

रास्ते में सुगन्धित जल का छिड़काव करवाया. मीठे दूध के कटोरे जगह-जगह रखवा दिए और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुंचाने का प्रयत्न न करे.

मध्य रात्रि को सर्प अपनी बांबी में से फुफकारता हुआ निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया. वह जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया. अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख-देखकर सर्प आनन्दित होता गया.

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