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कौशिक और उनके साथियों की जब मृत्यु हुई, तब ब्रह्माजी ने बड़े आदर से उन्हें और उनके साथियों को अपने लोक में बुलाकर सम्मान किया. इतना अधिक सम्मान पहले बार यहां किसी को मिला था सो यह देख ब्रह्मलोक में हलचल मच गई.
इसी बीच विष्णुजी के दूत आ पहुँचे. उन्होंने कौशिक और इनके साथियों को विष्णुलोक पहुंचाया. सम्मान देने के लिए ब्रह्मा और ब्रह्मलोक वाले भी उनके साथ गए. इस तरह विष्णुलोक में बहुत भीड़ हो गई.
भगवान विष्णु ने कौशिक और उनके शिष्यों को अपने समीप बिठाने के बाद कौशिक को अपने गणों का मुखिया बना दिया. मालव और मालवी को विष्णु लोक में गाने को रख लिया तो पद्माक्ष से बोले- तुम कुबेर हो जाओ.’
भगवान विष्णु ने उनके स्वागत में विशाल संगीत सभा बुलायी. सबसे बड़े गायक तुम्बुरू गंधर्व बुलाए गए. संगीत गाती हुई माता लक्ष्मी भी आ विराजी. भगवान सिंहासन पर विराजमान थे. सब उचित स्थान पर बैठ गये.
हमेशा भगवान के करीब रहने वाले देवर्षि नारद को संगीत न जानने के चलते दूर बिठाया गया तो संगीतज्ञ तुम्बुरु को लक्ष्मी और भगवान विष्णु के समीप में. यह बात नारदजी को बहुत खल गई.
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