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रावण ने दोनों को बुलाने के लिए दूत भेजे. दूतों ने पाताल लोक जाकर दोनों को बताया कि लंकापति रावण को आपके सहायता की आवश्यकता है.
अहिरावण और महिरावण को युद्ध की पूरी सूचना ही न थी. जब उन्होंने कुंभकर्ण और मेघनाद के वध की बात सुनी तो वे बड़े दुखी हुए और विलाप करने लगे.
फिर दूतों से जब पता चला कि विभीषण ने इस कार्य में शत्रु की सहायता की है तो दोनों भाई आग-बबूले हो गए. दोनों की भुजाएं क्रोध से फड़कने लगीं.
दोनों रावण के समक्ष उपस्थित हुए और उससे अपना शोक संदेश व्यक्त किया. रावण भी दोनों भाइयों के समक्ष भावुक हो गया.
उसने दोनों से सहायता मांगी और कहा कि वे अपने छल बल, कौशल से श्रीराम व लक्ष्मण का सफाया कर दे. अहिरावण और महिरावण को इसके लिए तैयार हो गए.
उन्होंने संकल्प लिया कि या तो वे दोनों भाइयों का वध करेंगे अन्यथा अपने प्राण त्याग देंगे.
यह बात दूतों के जरिए विभीषणजी को भी पता लग गयी. युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए.
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