सर्वकल्याण के लिए जपें श्री कृष्ण मंत्र

किस पितर का किस दिन करना चाहिए श्राद्ध कर्म. आखिर श्राद्ध कर्म की तिथि तय कैसे निर्धारित होती है. अगर श्राद्ध कर्म की तिथि पता न हो तो क्या करें.  श्राद्ध तिथि से जुड़े ऐसे बहुत से प्रश्न दिमाग में आते हैं.

श्राद्ध को शास्त्रों में अत्यंत आवश्यक कर्म कहा गया है. जिनके पितर असंतुष्ट रहते हैं उस परिवार में सुख-शांति नहीं होती. बनते काम अचानक बिगड़ने लगते हैं. अनावश्यक बाधाएं आती हैं. परिवार में क्लेश रहता है. इसलिए श्राद्ध अवधि के 15 दिनों में अपने पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. श्राद्ध तिथि के अनुसार श्राद्ध करना उत्तम है.

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श्राद्ध तिथि निर्धारण कैसे होती है. तर्पण श्राद्ध कर्म की तिथि से जुड़ी मान्यताएं-

इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि कैसे जानें कि किस पितर के पिंडदान या श्राद्ध  कर्म की तिथि कौन सी है. किस प्रकार निर्धारित होती है श्राद्ध तिथि.  पर उससे पहले संक्षेप में जानें कि आखिर क्यों किया जाता है पिंडदान या श्राद्ध कर्म.

कहते हैं पितरों का श्राद्ध न हो तो वे रक्त पान करते हैं. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. भगवान राम, सीता माता और पांडवों सभी द्वारा श्राद्ध कर्म किए जाने के वर्णन मिलते हैं. श्राद्ध में एक प्रश्न अवश्य आ जाता है श्राद्ध तिथि. श्राद्ध तिथि कैसे जानें.

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श्राद्ध की सबसे उत्तम तिथि वह है जिस तिथि को पूर्वजों का निधन होता है. उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना सबसे उत्तम है. जिन्हें परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं उनके लिए पितृपक्ष में कुछ विशेष तिथियां कही गई हैं. वे पितरों का उस दिन श्राद्ध कर्म कर सकते हैं.

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किस तिथि को होता है कि किसका श्राद्ध कर्म तर्पणः

  • भाद्रशुक्ल पूर्णिमाः श्राद्ध की तिथि शुरुआत भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा से ही हो जाती है. यह नाना-नानी पक्ष की श्राद्ध तिथि है. इस दिन उनका श्राद्ध किया जाता है. यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध तर्पण करने वाला न हो और उनकी मृत्यु की तिथि याद न हो तो इस दिन नाती उनका श्राद्ध कर सकते हैं.
  • पंचमी तिथिः पंचमी अविवाहित पितरों की उत्तम श्राद्ध तिथि है. ऐसे पितर जिनका देहांत अविवाहित अवस्था में ही हो गया उनका श्राद्ध कर्म इस तिथि को करना चाहिए.
  • नवमी तिथि: सौभाग्यवती स्त्री जिसकी मृत्यु उसके पति से पूर्व हुई हो उनकी श्राद्ध तिथि नवमी हो सकती है.  यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है. इसलिए इसे मातृनवमी भी कहा जाता है. इस श्राद्ध तिथि पर श्राद्ध कर्म से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है.
  • चतुर्दशी तिथिः अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों की श्राद्ध तिथि है. जिन पितरों की अकाल मृत्यु हुई हो यानी स्वाभाविक मृत्यु न हुई हो और उनके श्राद्ध का दिवस ज्ञात नहीं है, ऐसे लोगों का श्राद्ध कर्म चतुर्दशी को करें.
  • सर्वपितृमोक्ष अमावस्या: यह श्राद्ध तिथि सबसे उत्तम तिथि है. जिन्हें अपने पितरों के श्राद्ध की तिथि ज्ञात नहीं या किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों के श्राद्ध कर्म से चूक गए हैं वे इस दिन तर्पण करें. इस श्राद्ध तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है. इस दिन श्राद्ध कर्म तर्पण आदि से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है.
  • जिन लोगों का मरने पर अंतिम संस्कार विधिवत नहीं हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म भी पितृपक्ष की अमावस्या को करना चाहिए.

संकलनः डॉ. धर्मेंद्र कुमार पाठक
(डॉ धर्मेंद्र कुमार पाठक वेदज्ञ हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से वेद दर्शन और कर्मकांड में इन्होंने पीएचडी की शिक्षा प्राप्त की है. संप्रति राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में वेद विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.)

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