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रुद्राक्ष के प्रकारों के बारे में बतलाकर शिवजी बोले- देवी रूद्राक्ष में बड़ी शक्ति है. यह पापियों के पाप को नष्ट करने का सामर्थ्य रखता है. इसे धारण
करने से न सिर्फ मनुष्य के पाप कटते हैं बल्कि वह मेरा प्रिय भी हो जाता है.
अब मैं आपको किस रूद्राक्ष को धारण करते समय किस मंत्र का प्रयोग करना चाहिए इसके विषय में बताता हूं.
एकमुखी रुद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं नमः
द्विमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ नमः
त्रिमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ क्लीं नमः
चतुर्मुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं नमः
पंचमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं नमः
षड्मुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं हुं नमः
सप्तमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ हुं नमः
अष्टमुखी रुद्राक्ष के लिए- ऊँ हुं नमः
नवमुखी रुद्राक्षके लिए- ऊँ ह्रीं हुं नमः
दशमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं नमः
एकादशमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं हुं नमः
द्वादश मुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ क्रौं क्षौं रौं नमः
त्रयोदशमुखी रूद्राक्ष के लिए- ऊँ ह्रीं नमः
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष के लिए- ऊँ नमः
इतनी कथा सुनाने के बाद सूतजी बोले- गले में रूद्राक्ष, मस्तक पर त्रिपुंड धारण करने वाले और पंचाक्षर शिवमंत्र- नमः शिवाय का उच्चारण करने वाले को परमपूज्य ही समझना चाहिए.
मुनियों स्वयंमहादेवजी द्वारा भगवती जगदंबा को बताई रुद्राक्ष और भस्म की महिमा मैंने आपसे कही. श्रद्धाभक्तिपूर्वक आप रूद्राक्ष धारण कर स्वयं को कृतकृत्य करें.
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