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परंतु भगवान शंकर उस पर प्रसन्न न हुए. तब उबकर एक दिन उसने अपना शीश काटकर अर्पित करने का निश्चय किया. जैसे ही उसने खड्ग उठाकर शीश काटना चाहा, भगवान शिव प्रकट हो गए और वरदान मांगने को कहा.
वृकासुर बोला- नारद ने कहा था कि आप शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं पर मैं इतने वर्षो से तप कर रहा था. आप प्रसन्न नहीं हुए. आज मैं अपने प्राण देने चला तब आप प्रसन्न हो गए. एक बात तो समझ आ गई कि आप शीघ्र प्रसन्न नहीं होते.
इसका मतलब नारद ने मेरे साथ छल किया. उसे तो दंडित करना ही होगा. नारद जैसे पाखंडियों को मैं संसार में दंडित करूंगा. आप मुझे ‘मारण वर’ दीजिए. मैं जिस प्राणी के सिर पर मात्र हाथ भर रख दूं, उसी का नाश हो जाए.
शिवजी ने कहा- वृकासुर तुमने इतना कठिन तप किया है. इतने त्याग का फल किसी का अनिष्ट करने वाला क्यों चाहते हो. चाहो तो तुम अपने कल्याण के वरदान मांग लो. दूसरे का अहित सोचने से तो अच्छा है अपना ही हित कर लेना.
मैं तुम्हें अवसर देता हूं एक बार पुनः विचार कर लो. तुम्हें अगर विचार करने के लिए कुछ समय चाहिए तो मैं प्रतीक्षा कर लूंगा.
वृकासुर शिवजी के कही बात का मर्म ही नहीं समझ पाया. उसे लगा शिवजी वरदान देना नहीं चाहते इसलिए तरह-तरह से बहला रहे हैं. उसे बड़ा क्रोध आया.
वृकासुर बोला- मेरे साथ छल पर छल होता आ रहा है. पहले तो नारद ने झूठ बोला. अब आप प्रसन्न हुए भी तो मेरा इच्छित वरदान देने में आनाकानी कर रहे हैं. क्या यही देव परंपरा है! अब आप स्वयं द्वारा स्थापित नियम भी भंग करेंगे.
मुझे तो अपनी पसंद का वरदान चाहिए, मैं उसी में संतुष्ट हूं. आप तो मुझे मारण वर ही दीजिए.
शिवजी को उसकी बुद्धिहीनता पर दया आ गई. उन्होंने उसे पुनः समझाने का प्रयास किया.
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Jai HariHar leela. Om Namah Shivay
Jai Sri HariHar leela. Om Namah Shivay
Piz ma lalitamba ke bare me likhiye ga jai siya ram ji KI