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घड़ियाल ने भी पंडितजी के मन के भाव भांप लिए.
उसने कहा- आप बुरा न मानें. गधा मेरा पुराना सत्संगी है. मनोहर कपड़े धोता रहता है, गधा नदी के किनारे खड़ा रहता है, बड़ा ज्ञानी है. सच पूछो तो उसी से मुझमें भी ज्ञान की किरण जगी.
पंडितजी वापिस लौटे तो बड़े उदास थे. चैन मुश्किल हो गई, रात नींद न आए कि घड़ियाल हंसा तो क्यों हंसा? गधे को ऐसा क्या राज मालूम है? पर मैं यह बात पूछूं भी तो गधे से! रातभर विचारों का द्वंद्व चलता रहा.
रात तो जैसे तैसे कट गई, सुबह संभाल न सके स्वयं को. थोड़ी देर और विचारों के साथ संघर्ष किया और फिर चल पड़े गधे से घड़ियाल के हंसने का कारण जानने.
खोजते-खाजते पहुंच ही गए मनोहर धोबी के गधे के पास.
गधे से सप्रेम पूछा- महाराज! मैं वही पंडित हूं जिससे आपका मित्र घड़ियाल कथाएं सुनता था. मुझे भी समझाएं, मामला क्या है? घड़ियाल हंसा तो क्यों हंसा?
पंडितजी की बात सुनकर अब वह गधा भी हंसने लगा.
पंडितजी के मन का क्लेश तो अब पहले से भी ज्यादा बढ़ गया. घड़ियाल तो हंसा सो हंसा अब यह गधा भी मुझ पर हंस रहा है. इतनी दूर से इसे खोजता-खाजता परेशानहाल पहुंचा हूं और यह मेरा माखौल उड़ा रहा है.
गधा तो ज्ञानी था. वैसे स्वभाव से गधे चाहे जैसे भी होते हों पर पंडितजी के यजमान ने कहा था कि ये गधा ज्ञानी है. ज्ञानी है तो फिर यह भी मुझपर हंस रहा है.
आखिर ऐसा क्या कर दिया है मैंने? गधा भी उनके मन के भाव भांप गया.
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