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अब नौकरी न हो सकती थी, सो दोनों अपने राजमहल की तरफ चले. रास्ते में साहूकार का घर आया. यहाँ वे उसी कमरे में ठहरे तो देखा कि दीवार पर बना मोर नौलखा हार उगल रहा है. साहूकार ने यह चमत्कार देख राजा के पैर पकड लिये और खूब सारा धन भेंट किया.
आगे चलने पर बहन के घर आया. नल उसी पुराने महल में ठहरा जहां मिट्टी की परात दबायी थी. वह जगह खोदी तो हीरे जड़ा थाल निकला. राजा ने बहन को बहुत सा धन भेंट में दे आगे चल दिया.
इसके बाद नल दमयंती मित्र के घर पहुँचे और उसी कमरे में ठहरे जिसमें पहले रुके थे. मित्र के लोहे के औजार और सब सामान सही सलामत मिल गये. उसने उपहार दे विदा किया.
आगे चलने पर उसकी धोती एक पेड़ पर उलझी हुई मिल गयी. तो राजकुमार जिसको ने सांप ने डस लिया था उसी के साथ खेलता हुआ मिल गया.
अपने महलों में पहुचने पर दमयंती की सखियों ने मंगल गान गाया और नल का उसके मंत्रियों और अधिकारियों ने जी खोल कर स्वागत किया. संपदाजी ने उनके बुरे दिन अच्छे दिनों में बदल दिये.
स्रोत : पारंपरिक लोककथाएं
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