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देवों को ये ऋषि पुष्ट कर रहे हैं, यह सोचकर रावण का खून खौलने लगा. रावण ने उनको जान से मारने की बजाये उनको दंड देना, डराना और इसके लिये उनका खून निकालना ही बहुत समझा.

रावण के सैनिकों ने ऋषियों के शरीर में गहराई तक बाण चुभो कर खून निकाला. अब इस खून को रखें कहां!

पास ही गत्समद ऋषि की कुटिया थी जिसके भीतर एक सुंदर कलश रखा था.

गत्समद हवन के लिए लकड़ियां लेने गये थे. सैनिक वह घड़ा उठा लाए और कई ऋषि मुनियों का रक्त उसमें इकट्ठा कर लिया.

गत्समद ऋषि सौ पुत्रों के पिता थे. वह चाहते थे कि उनको एक बेटी हो और वह भी लक्ष्मी का अवतार. सो उन्होंने माता लक्ष्मी से विनती की कि माता लक्ष्मी उनके घर पुत्री रूप में जन्म लें.

इसके लिये वह हर रोज मंत्र पढकर एक कुश की नोक से उस घड़े में दूध की एक बूंद डाला करते थे. बाद में वह उसे विशेष अनुष्ठान से माता लक्ष्मी को अर्पितकर पुत्री रूप में आने की विनती करने वाले थे.

इसी दूध वाले घड़े में ऋषि मुनियों का खून इकट्ठा कर सैनिकों ने रावण को सौंप दिया.

रावण वह घड़ा लेकर लंका पहुंचा और घड़े को अपनी पत्नी मंदोदरी को देकर कहा कि इस कमंडल को संभाल कर रखना.

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