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प्रभु ने दूत भेजकर हनुमानजी को आदेश दिया कि वह उनके शत्रु की रक्षा न करें. हनुमानजी ने कहा कि मैं दो-दो माताओं के शरणागत की रक्षा का आदेश पूरा कर रहा हूं. अब तो प्रभु को अपना वचन पूरा करने के लिए मेरे प्राण लेने होंगे.

भगवान श्रीराम के क्रोध की कोई सीमा न रही. उन्होंने दूत से कहलवाया कि अपना वचन पूरा करने के लिए वह हनुमानजी से युद्ध करने आ रहे हैं, तैयार रहें.

हनुमानजी दुविधा में आ गए. वह प्रभु के पास आए और प्रणामकर उनसे युद्ध में विजय का आशीर्वाद मांगा. प्रभु ने मुस्काते हुए आशीर्वाद दे दिया.

अब जिसे विजय का आशीर्वाद दिया उससे युद्ध भी करना था. प्रभु ने ब्रह्मास्त्र निकाला और उसका संधान करने लगे.

उसी समय श्रीराम के कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के साथ विश्वामित्र पहुंचे और प्रभु से अनुरोध किया वह ऐसा न करें.

विश्वामित्र ने कहा- मैंने काशीराज को क्षमा कर दिया है. इसलिए आप उसका वध न करें.

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