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डॉक्टर को बड़ा अचंभा हुआ. वह बोले- शरीर पर इतने जख्म लगे तब दर्द नहीं हुआ. तब तक हंसते रहे गाते रहे जब तक बेहोश न हुए और अब दर्द की बात करते हैं.
संत बोले- सूई अगर मेरे मांस में लगेगी तो कोई आपत्ति नहीं मुझे पर खून में लगे इस पर चिंता है क्योंकि मेरे रक्त के कण कण में राम हैं.
उन्हें नहीं चुभनी चाहिए. इसलिए इसे दूर ही रखो.
डॉक्टर तो अब गुस्से में बौखला गया. उसने कहा- तब कहां था तुम्हारा राम जब सब लोग तुम पर हर ओर से पत्थर बरसा रहे थे?
संत शांत स्वर में बोले- तब भी वह यहीं था पर वह जानता है कि कांटों में मेरा भक्त खिलता है. वह आगे बढ़कर बार-बार बचाने आ रहा था पर मैं ही विनती कर रहा था प्रभु इनका क्रोध शांत हो जाने दीजिए! देखो वे सब मुझे मारने के बाद चले तो गए.
डॉक्टर ने पूछा तो क्या अब आपके राम मान गए, वह शांत हो गए?
संत ने कहा- भक्त को कष्ट हो तो भगवान को कहां चैन होता है. अब मेरे राम और प्रकृति काम कर रहे हैं. मैं तो यहां मजे में विश्राम कर रहा हूँ!
डॉक्टर ने पूछा- वह कैसै महाराज, पहेलियां मत बुझाओ? संत ने कहा- वैधजी आप प्रमाण चाहते हैं तो स्वयं जाकर देख लो मेरे भगवान का कार्य! जिस गली में से मुझे उठा लाए हो वहां जाओ मेरे राम का काम दिख जाएगा.
डॉक्टर ने भी सोचा चलो देख ही लिया जाए.
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